भगवन कैसे सहायता करते है ?/ How does God help?


भगवन कैसे सहायता करते है ? 


How does God help?


मैंने 1983 में हाई स्कूल किया.  हमारे स्कूल का नाम जैन विद्या मंदिर इंटर कॉलेज था, यह स्कूल आज भी है। । 1983 में हाईस्कूल पास करने के बाद आर्थिक स्थिति सही ना होने के कारण मैंने पढ़ाई छोड़ने का निश्चय किया। लेकिन इन्हीं मित्र के कारण आगे बढ़ पाया एक दिन मेरे पास वह मेरे घर  आए और उनके दूसरे मित्र भी साथ आए जिनका नाम अरुण जैन था, इनका छोटा भाई आलोक जैन कक्षा 10 में मेरे स्कूल में ही पढ़ने जाता था उस समय हाई स्कूल में फर्स्ट डिवीजन लाना एक बहुत बड़ी बात होती थी। उस समय हमारी क्लास में 5 फर्स्ट डिवीजन आई थी।  जिसमें एक नाम मेरा भी था। उस समय मेरे रिजल्ट में 500 में से 300 यानि के 60% मार्क्स आए थे। यदि एक भी नंबर कम रह जाता तो मेरी सेकंड डिविजन रह जाती।


आलोक जैन से मित्रता के कारण हम एक दूसरे के घर आते-जाते थे और पढ़ते थे। उस समय मैं पढ़ाई में काफी अच्छा था तो वह बोला कि इस बार मैं कक्षा 10 में आया हूं तो मुझे एग्जाम टाइम में मेरी तैयारी मेरे घर रहकर ही करा देना। मैंने ऐसा ही किया और उनकी फर्स्ट डिवीजन आई और मैं कक्षा 11 में फेल हो गया। केमिस्ट्री सब्जेक्ट में मेरे नंबर बहुत कम थे और इसी कारण से मैं फेल हुआ था। और उससे वहीं पर मेरी मित्रता हुई थी। मेरे साथ ही पढ़ता था, उसने ही मेरे आगे की पढ़ाई जारी ना रखने के बारे में उनको बताया था। उन्होंने मुझसे आगे की पढ़ाई जारी न रखने के लिए पूछा तो मैंने कहा 11वीं क्लास की पुस्तकें बहुत महंगी हैं क्योंकि उस समय प्राइवेट कोर्स हुआ करते थे। किताबे बहुत महंगी हुआ करती थी। इसलिए मैं किताबें खरीदने में असमर्थ था। अगले दिन उन्होंने मुझे बुलाया और कक्षा 12 की किताबें मुझे खरीद कर दी और स्कूल जाकर मेरा एडमिशन कराया।

इसके साथ ही आलोक जी ने मुझे अपनी दुकान पर बुलाया. और उसके बाद मैंने इलेक्ट्रॉनिक का काम किताबों से तथा दुकानों पर बैठकर सीखा। मैंने इलेक्ट्रॉनिक्स में कोई सर्टिफिकेट डिप्लोमा नहीं किया था केवल इलेक्ट्रॉनिक की दुकानों पर मेरे एक मित्र जिनका नाम आलोक उर्फ़ गुड्डू था, जो इलेक्ट्रॉनिक काम करते थे। उन्होंने मुझे आगे बढ़ने के लिए, इलेक्ट्रिक फिटिंग का काम सिखाने के लिए काम में आने वाले यंत्रों को मुझे लाकर दिया और अपनी दुकान पर बैठने के लिए मौका दिया।  मेरे सवालों के जवाब इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक के संबंध में भी देते थे और धीरे-धीरे मैं इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स का काम सीखता  चला गया। उनके अतिरिक्त अन्य लोगो ने भी मुझे ये काम सीखने में मेरी बहुत सहयता की। आज में उनके इस उपकार का ऋणी हूँ और हमेशा याद रखूँगा। सीखने के बाद 1984 में मुझको एक राइस मिल की बिजली फिटिंग रिपेयर करने का लम्बा काम मिला। उस ज़माने में मुझको 70 रुपये प्रतिदिन मिलते थे। मेरा काम और नाम बढ़ता चला गया। इसी मित्र के कारण आगे चलकर मैंने 1998 में इलेक्ट्रॉनिक उस समय वाल्वो वाले TV और रेडियो प्रचलन में थे। इसको हाइब्रिड टेक्नोलॉजी कहा जाता था।
उसके बाद सेमीकंडक्टर का आविष्कार हुआ और ट्रांजिस्टर का आविष्कार होने से कांच के बड़े-बड़े वाल्व का स्थान ट्रांजिस्टर द्वारा लेने से रेडियो और टीवी का आकर छोटा हो गया। इसके बाद IC इंटिग्रेटेड सर्किट की खोज होने से इलेक्ट्रॉनिक्स यंत्रों का आकर और भी छोटा हो गया।

आगे क्या हुआ ? जानने के लिए आने वाला ब्लॉग पढ़ते रहिये। 


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