उन्नति के रास्ते भगवान ही आपके लिए खोलते हैं /God opens you up to the path of progress
इलेक्ट्रॉनिक की तरफ बढ़ते मेरे कदम
उसके बाद 1985 में मैंने 12वीं
पास किया। 1985 के अंत से मैंने बिजली फिटिंग का काम शुरू कर
दिया। परिवार की आर्थिक स्तिथी ठीक नहीं थी। आजीविका के साधन सीमित होने के कारण
बिजली फिटिंग के कार्य से मुझे आगे पढ़ने के लिए मार्ग मिला सन् 1987 से 1989
तक
इलेक्ट्रीशियन ट्रेड से आईटीआई किया। आईटीआई करने के बाद ढ़ाई साल की अप्रेंटिस भी
की। इलेक्ट्रिकल
और इलेक्ट्रॉनिक्स में अच्छा ज्ञान होने के कारण में प्रसिद्ध होने लगा और और मैं
अपने अलोक उर्फ़ गुड्डू भाई के यहां भी जाता ही था तो उन्होंने मुझे स्टेबलाइजर
बनाने के लिए कहा। मैंने फार्मूले के द्वारा स्टेबलाइजर बनाया और उन्होंने अपने
यहां पर एक स्टेबलाइजर की फैक्ट्री खोल दी और उसमें में काम करने लगा। फिर एक दिन
बैटरी बनाने के क्षेत्र में भी मेरी रुचि बढ़ी और मैं किसी के यहां पर बैटरी बनाना देखकर सीख गया और
आलोक जी मुझे बैटरी बनाने में काम आने वाले सामान की दुकान पर ले गए और उस दुकान
से बैटरी बनाने का सामान खरीदा। मैंने उनको बना कर दिखाया और अब उनके बैटरी बनाने
का काम एक फैक्ट्री के रूप में बदल गया है। मेरा क्षेत्र पढ़ाने की तरफ चला गया था
और मैंने सन 1998 में रेडियो और टीवी के क्षेत्र में एक ट्रेनिंग सेंटर खोला।
जिसका नाम शुभम रेडियो एवं टीवी ट्रेनिंग सेंटर रखा। यह मैंने सन 2003 तक चलाया इस सेंटर पर जो किताबें इलेक्ट्रॉनिक की पढ़ाई जाती थी और प्रैक्टिकल कराया जाता था तो एक प्रैक्टिकल की किताब में एंपलीफायर प्लेयर बनाने के सर्किट को देखकर स्टूडेंट बना रहे थे तो बनाने के बाद जब उसमें बिजली देकर ऑन किया तो उसमें विस्फोट हो गया। जब मैंने सर्किट चेक किया तो वह सर्किट गलत बना हुआ था। मैंने संशोधन किया और उनका वह प्रोजेक्ट ठीक किया।
जिसका नाम शुभम रेडियो एवं टीवी ट्रेनिंग सेंटर रखा। यह मैंने सन 2003 तक चलाया इस सेंटर पर जो किताबें इलेक्ट्रॉनिक की पढ़ाई जाती थी और प्रैक्टिकल कराया जाता था तो एक प्रैक्टिकल की किताब में एंपलीफायर प्लेयर बनाने के सर्किट को देखकर स्टूडेंट बना रहे थे तो बनाने के बाद जब उसमें बिजली देकर ऑन किया तो उसमें विस्फोट हो गया। जब मैंने सर्किट चेक किया तो वह सर्किट गलत बना हुआ था। मैंने संशोधन किया और उनका वह प्रोजेक्ट ठीक किया।
तुरंत मैंने रात को 10 :00 बजे किताब के
पब्लिशर श्रीमान राजेश गुप्ता जी को फोन लगाया और उन्होंने फोन उठाया। मैंने उनसे
बात की, कि आपकी किताब
के पेज नंबर इतने पर और अन्य किताबों के भी मैंने गलतियां उनको बताई। उन्होंने कहा
कि क्या आप यह गलतियां सही कर सकते हो ? तब मैंने कहा - हां मैं सभी किताबों की गलतियां सही कर सकता हूं। एक
दिन दिल्ली से राजेश गुप्ता जी मेरे घर आ गए और मेरे से किताब लिखने के बारे में
आग्रह किया।
बोले कि रेडियो रिपेयरिंग विषय पर कुछ लिखकर दिखाइए तो मैंने रेडियो
रिपेयरिंग के ऊपर उनको एक लेख लिख कर दिखाया तो उनको पसंद आ गया और उन्होंने मेरे
ट्रेनिंग सेंटर पर भी विजिट किया। ट्रांजिस्टर सर्विसिंग मैनुअल की बुक मैंने
लिखकर तैयार की और गुप्ता जी को दिल्ली देकर आया और वह किताब छप गई उसके साथ ही उन्होंने मुझे इलेक्ट्रॉनिक्स
प्रोजेक्ट पर कई किताबें लिखने के लिए ऑफर दिया। लगभग ७० हजार की पेमेंट मुझे
प्राप्त हुई। गुप्ता जी ने मुझे प्रति पेज
₹70 लिखने के
लिए दिए। मैं बहुत खुश था। मैंने ईश्वर को
धन्यवाद दिया।
गुप्ता जी का राणा प्रताप दिल्ली में एक
गुरुकुल टेक्निकल्स कंप्यूटर ट्रेनिंग
इंस्टिट्यूट भी है। एक बार मैं अपने
द्वारा लिखी इलेक्ट्रॉनिक्स प्रोजेक्ट्स
की किताब लेकर उनके पास गया कि मैंने लिख दी है, आप इसको चेक कर लीजिए। उस दिन उनके इंस्टिट्यूट पर कोई फैकल्टी अनुपस्थित
था तो बेसिक इलेक्ट्रॉनिक्स क्लास कौन पढाये ? तो इस के कारण गुप्ता जी मुझसे बोले कि, आपको
बेसिक इलेक्ट्रॉनिक्स की क्लास में
रजिस्टेंस पढ़ाना है और मैं चला गया क्योंकि मैं अपने सेंटर पर पढ़ाता ही
था तो मुझे कोई परेशानी आने वाली नहीं थी।
मैं पढ़ाने गया तो स्टूडेंट शुरू में तो परेशान हुए, पता नहीं मैं नया टीचर कैसे पढ़ाऊंगा ? मैंने तुरंत उनको शांत होने के लिए कहा
और मैंने पढ़ाना शुरू किया तो 1 घंटे की क्लास के बाद सभी स्टूडेंट्स बहुत खुश हुए और कहा कि आज बहुत अच्छा समझ में
आया। आज से आप ही पढाइएगा तो मुझे 2003
में गुप्ता जी ने पढ़ाने के लिए अपने सेंटर पर
नियुक्त करने का ऑफर दिया।
मैंने
उसको स्वीकार किया और मैं दिल्ली पढ़ाने चला गया और स्टूडेंट के मन में बस गया। उनको पढ़ाई बहुत अच्छी लगने लगी और जो भी
एडमिशन होने के लिए स्टूडेंट आते तो सबसे पहले उनकी बेसिक इलेक्ट्रॉनिक्स की क्लास में ही लेता था
और एडमिशन हो जाते थे। उस समय गुप्ता जी मुझे अपने साथ ही अपने घर पर रखते थे और
उसका किराया भी मुझे नहीं देना पड़ता था।
तो यह सब मैं देख रहा था कि मेरे साथ यह दिन प्रतिदिन क्या होता जा रहा है ? मैं
उन्नति के बारे में भी सोच रहा था कि, किस प्रकार से उन्नति होती चली जाती है, यह सब क्यों होती है? इसका क्या कारण है? तो इसका कारण केवल आदमी का प्रारब्ध और
आज के कर्म ही है। कर्म तो करना पड़ेगा लेकिन फल उसको अपने खुद के
प्रारब्ध के कारण ही मिलता चला जाएगा
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